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डॉ.अविनाश बने कोरिया पोलर रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा सम्मानित होने वाले देश के पहले वैज्ञानिक

• 12 वर्षों में 10 से अधिक अवार्ड कर चुके हैं हासिल
• अंटार्कटिक महासागर सहित अन्य महासगरों पर पहुंचकर कई महीनों किया है रिसर्च
• कई देशों में भारत का कर चुके हैं प्रतिनिधित्व
• गोवा के नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओसियन रिसर्च में वैज्ञानिक के रूप में है कार्यरत

नवादा 3 मई: कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों. दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियाँ एक ओर हौसलों को पंख देती मालूम पड़ती है तो दूसरी तरफ किसी भी मक़ाम को मेहनत के बल-बूते हासिल करने के जज्बे को भी दिखाती है. कुछ ऐसे ही जज्बे के साथ नवादा जिले के हिसुआ प्रखंड के डॉ. अविनाश कुमार एक छोटे से जिले से निकलकर केवल अपने जिले को ही गौरवान्वित नहीं किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर पोलर एवं ओसियन रिसर्च में देश का परचम भी लहराया है. 12 वर्षों में 10 से अधिक अवार्ड हासिल कर चुके डॉ. अविनाश ने सफलता की इसी कड़ी में अब एक नया अध्याय भी जोड़ दिया है.

कोरिया पोलर रिसर्च इंस्टिट्यूट ने उन्हें पोलर रिसर्च में बेहतर कार्य करने के लिए एवं कोरियन प्रयोगशाला में तीन माह रहकर उत्तरी धुर्व में ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हो रहे प्रभाव से एशियाई देशों में मौसम के बदलावों के अध्ययन लिए मौका देते हुए इस प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित किया है. बताते चलें कि देश में इस तरह का सम्मान हासिल करने वाले वह पहले वैज्ञानिक बने हैं. अपने रिसर्च लाइफ में जहाँ डॉ. अविनाश ने अंटार्कटिक, अटलांटिक एवं हिन्द महासागर सहित अरबीयन सी एवं बे ऑफ़ बंगाल में रहकर कई महीनों तक ओसियन एवं पोलर रिसर्च पर कार्य कर इसे एक नया मुकाम दिया. वहीं जापान एवं स्वीटजरलैंड जैसे देशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर पोलर रिसर्च की दुनिया में देश का परचम लहराने के साथ अपना लोहा भी मनवाया है.

संसाधनों की कमी हौसलों में बाधक नहीं होती:

गोवा के नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओसियन रिसर्च, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ( भारत सरकार) में सीनियर पोलर साइंटिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. अविनाश कुमार बताते हैं कि एक छोटे से प्रखंड से अपनी प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत करने के बाद भी आज वह जिस मुकाम पर पहुंचे हैं उसमें उनके सम्पूर्ण परिवार के सहयोग के साथ उनके गुरुजनों का विशेष आशीर्वाद शामिल है. वह कहतें हैं कि संसाधनों की कमी हौसलों को पस्त नहीं करती है. इसे अगर सकारात्मक रूप से लिया जाए तो मुश्किलें महज आगे निकलने की चुनौती पेश करती है, जो किसी भी बड़ी सफलता की सूत्रधार बनती है. वह बताते हैं कि वह आज जिस मुकाम पर खड़े हैं उसमें उनके पिता डॉ. अमरनाथ राव एवं स्वर्गीय माता का बहुत योगदान है.

अपनी माता को याद करते हुए भावुक होकर बताते हैं कि उनकी माता की असामयिक मृत्यु ने पूरे परिवार को कुछ गहरे दर्द दिए हैं. लेकिन उनका आशीर्वाद आज भी उनके साथ है जो उन्हें मुश्किलों में भी आगे बढ़ने के लिए सतत प्रेरित करता है. वह कहते हैं कि उनके चाचा श्री शिवलोचन राव एवं उनके प्रारंभिक गुरु श्री प्रवीण कुमार पंकज एवं श्री जगदम्ब मंडल मुश्किल स्थितियों में हमेशा साथ खड़े रहे हैं एवं समय-समय पर मार्गदर्शन करते रहे हैं. अपनी सफलता में उन्होंने अपने मित्रों एवं हिसुआ वासियों की भी योगदान की चर्चा करते हए बताया कि आज उनका यह मुकाम सभी के सहयोग एवं आशीर्वाद का ही नतीजा है.

भाई की सफलता से बहुत खुश हूँ:

डॉ. अविनाश के बड़े भाई डॉ. शिशुपाल राव नवादा जिले के गोविंदपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मेडिकल ऑफिसर के रूप में कार्यरत हैं. वह बताते हैं कि भाई की अनवरत सफलता को देखकर उन्हें ख़ुशी के साथ गौरव भी महसूस होता है. उनका कहना है कि चिकित्सा एवं विज्ञान एक दूसरे के संपूरक है. देश को अभी ऐसे ही युवा वैज्ञानिकों की जरूरत है जो अनुसंधान के क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व कर सके एवं देश को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिला सके l उन्होंने अपने अनुज भाई डॉ. अविनाश को उनकी सफलता के लिए ढेर शुभकामनायें दी एवं ऐसे ही आगे भी अग्रसर रहने की ख्वाहिश जाहिर की.

पोलर एवं ओसियन रिसर्च में दर्ज की नयी पहचान:

• वर्ष 2020 में कोरिया पोलर रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा बेस्ट पोलर साइंटिस्ट का अवार्ड किया हासिल
• वर्ष 2019 में जापान में पोलर रिसर्च को लेकर देश का प्रतिनिधित्व कर देश का बढाया गौरव
• वर्ष 2018 में कार्यशाला दाबोस, स्वीटजरलैंड में पोलर रिसर्च पर आयोजित वैश्विक कार्यशाला में सम्मलित होकर अपने अनुसंधान का लोहा मनवाया
• वर्ष 2017 में पोलर रिसर्च को लेकर दक्षिण कोरिया का दौरा किया, जहाँ उन्हें यंग रिसर्चर के सम्मान से सम्मानित किया गया
• वर्ष 2015-16 में अफ्रीका का दौरा करते हुए अंटार्कटिक महासागर में 4 महीने से अधिक पोलर रिसर्च पर कार्य किया
• वर्ष 2010 से लेकर वर्ष 2013 तक ईरान एवं मॉरिशस जैसे कई देशों में ओसियन रिसर्च को लेकर दौरा किया एवं रिसर्च में अपनी एक अलग मुकाम हासिल की
• अंटार्कटिक महासागर के अलावा अटलांटिक एवं हिन्द महासागर सहित अरबीयन सी एवं बे ऑफ़ बंगाल में रहकर भी कई महीनों तक पोलर एवं ओसियन रिसर्च पर कार्य किया
• उनका रिसर्च अनुसंधान 50 से ज्यादा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हुआ है.