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परिवर्तन को अब कोई भी ताकत रोक नहीं सकती प्रो.(डॉ.) लाल बाबू यादव

बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष श्री तेजस्वी यादव ने आज से बेरो़गारी हटाओ अभियान के तहत अपना राज्यव्यापी सघन दौरा शुरू कर दिया है यह राष्ट्रीय जनता दल का चुनाव के पूर्व का प्रथम जनसंपर्क अभियान है जिसके तहत राज्य के लाखों लाख युवाओं को जोड़ने का प्रयास होगा। इस देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोज़गारी हीं रही है और बिहार उससे सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में रहा है। तीन तरफ नदियों से घिरे सारण प्रमंडल के तीनों जिलों सारण,सीवान, गोपालगंज तथा पूर्वी एवम् पश्चिमी चंपारण के साथ हीं आरा, बक्सर आदि का इलाका भी प्रतिवर्ष बाढ़ सुखाड़ से सर्वाधिक प्रभावित होता रहा है यही कारण है कि उस क्षेत्र के लोग काम और रोज़ी की तलाश में दूर देश के तरफ़ पलायन करते रहे हैं।इस क्षेत्र के लोगों को लेकर हीं पहली बार 1834 में कलकत्ता में मजदूरी कमाने गए लोगों को लेकर पहली बार लोगों का एक जत्था अफ्रीकी देश मारिशस गया था।

चुकि इन लोगों को अंग्रेजों ने एक समझौते के तहत मजदूर बनाया था जिससे इन्हें एग्रीमेंट लेबर यानि भोजपुरी में गिरमिटिया कहा गया, बाद में बिहारी गिरमिटिया मरिशस के अलावा फ़िजी, गुवाना तथा अन्य अफ़्रीकी देशों में भी गए। रोज़ी रोटी की तलाश की यह प्रक्रिया पिछले डेढ़ सौ वर्षों से लगातार जारी है आबादी बढ़ने एवं बिहार से झारखंड का अलग होने के बाद आज बिहारी नौजवानों के लिए रोज़ी रोटी की समस्या सबसे विकराल रुप धारण कर चुकी है पहले उत्तर बिहार के मजदूर कलकत्ता के चटकल में काम करने के लिए तथा असम में मिट्टी काटने के लिए जाया करते थे।बाद में ये पंजाब , हरियाणा दिल्ली हिमाचल प्रदेश तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में विनिर्माण उद्योग तथा पंजाब में कृषि कार्य में मजदूरी कर आपना पेट भरने को विवश हो गए।पंजाब में तो बजाप्ता बिहारी मजदूरों का बाज़ार भी लगाया जाने लगा ।

हाल के दिनों में बिहार के स्किल्ड मजदूर खाड़ी के देशों में भी जा रहे हैं परन्तु बिहार में बेकारी की समस्या की समाधान की दिशा में वर्तमान नीतीश के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पूर्णतः विफल साबित हुई है। असंगठित मजदूरों को मनरेगा के तहत साल में सौ दिन काम देने का सरकारी निर्णय छलावा साबित हुआ है राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार एनडीए सरकार की कार्य अवधि में बेरोज़गारी पिछले पैतालीस वर्षों में सर्वाधिक खतरनाक स्थिति में पहुंच गई है। सभी कोटि को मिलाकर सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालयों में लाखो लाख पद रिक्त हैं।राज्य के विश्व विद्यालयों में पिछले 18 वर्षों से कुछेक अपवादों को छोड़कर नई नियुक्तियां नहीं हुई है जिससे दस हजार विश्वविद्यालय के पद रिक्त हैं। स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति संविदा या ठेके पर की जा रही है जिनकी कोई सेवा शर्त नहीं है और उन्हें कभी भी नौकरी से बाहर निकालने की धमकियां दी जाती रही हैं।हाल के दिनों में हड़ताली नियोजित शिक्षकों को अकारण बर्खास्त किया जा रहा है।

एक तरफ भयंकर बेरो़गारी का दंश झेल रहे बिहार के युवकों के समक्ष गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो रहा है वहीं दूसरी तरफ सुशासन के नाम पर नीतीश कुमार की एनडीए सरकार विकास का ढिंढोरा पीट रही है।युवा तेजस्वी की तरफ बिहार का आम आवाम आशा भरी नजरों से देख रहा है खासकर युवाओं को ऐसा महसूस होता दिखाई पड़ रहा है कि अगर 2020 के विधान चुनाव में महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली की राह पर चलते हुए बिहार में बदलाव की आहट सुनाई पड़ने लगी है। ऐसी परिस्थिति में हम सबका खासकर नौजवानों का कर्तव्य है कि वे तेजस्वी के इस बेरो़गारी हटाओ अभियान में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लें और नीतीश सरकार को यह बतला दें कि तेजस्वी के नेतृत्व में सत्ता। परिवर्तन को अब कोई भी ताकत रोक नहीं सकती।
“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”।
लेखक-प्रो.(डॉ.) लाल बाबू यादव,पूर्व विभागाध्यक्ष स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग जय प्रकाश विश्वविद्यालय सहब प्रत्याशी सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र।