Homeदेशबिहारस्वास्थ्य

टीबी बीमारी से 32 की उम्र में 32 किलो वजन होने पर भी हिम्मत नहीं हारे व जीती लड़ाई

कोरोना संक्रमण के बाद टीबी जैसी बीमारियों में आई गिरावट: डॉ एमके झा

बीच में दवा खानी छोड़ी तो दो वर्षो तक झेलनी पड़ी बीमारी: टीबी मरीज

सकारात्मक सोच के साथ नियमित रूप से दवाइयां लेने के बाद सेहत में होने लगा सुधार: डब्लू राम

पूर्णिया(बिहार)रूपौली प्रखंड के ग्वालपाड़ा गांव निवासी महेंद्र राम के 32 वर्षीय पुत्र डब्लू राम पांच परिवार का भरण पोषण जीविका समूह से जुड़कर कर रहे हैं। क्योंकि मेहनत करना या वजनदार कार्यों को पूरा करने के लिए उनके पास ताकत या क्षमता नहीं है। इस संबंध में डब्लू ने बताया कि वर्ष 2016 के जनवरी महीने में खांसी, उल्टी, सीने में दर्द, सोने में परेशानी सहित बुखार की शिकायत शुरू होने लगी थी। लगभग दो महीने तक दवा खरीदकर खायी लेकिन बीमारी ठीक होने के बजाय बढ़ती चली गई। जिस कारण 32 की उम्र में 32 किलो वजन हो गया था। बीमारी ठीक नहीं होने के बाद गांव की आशा कार्यकर्ता रेखा देवी ने बताया कि सरकारी अस्पताल जाकर चिकित्सकों से दिखानी पड़ेगी। वह नजदीकी अस्पताल रूपौली अपने साथ लेकर गई और जांच करवाई तो टीबी की बीमारी का पता चला। जांच के बाद बीमारी की दवा भी दिलाई। कुछ दिनों तक दवा खायी बाकी कुछ महीनों के लिए दवा लेकर पंजाब चला गया।

बीच में दवा खानी छोड़ी तो चार वर्षो तक झेलनी पड़ी बीमारी: टीबी मरीज़
डब्लू ने बताया कि लगभग तीन महीने के बाद फिर से तबियत खराब हो गयी। छठ पूजा के दौरान घर वापस आ गये।अस्पताल जाकर जांच करायी तो बीमारी का पता चला। बाद में दो महीने तक घर पर रहते हुए दवा खायी व तीन महीने की दवा लेकर पंजाब चले गये। वह कुछ दिनों तक पूरी तरह से ठीक हो गये थे। लगभग एक वर्ष के बाद उनकी  तबियत अचानक बिगड़ गई। रूपौली के चिकित्सकों ने सदर अस्पताल पूर्णिया रेफर कर दिया। यहां आने के बाद जिला यक्ष्मा केंद्र में जांच करायी गयी तो एमडीआर टीबी निकला। जिसकी दवा लगभग दो वर्षों तक खानी पड़ी थी। वह बताते हैं कि मेरी सबसे बड़ी गलती यही थी कि टीबी की दवा का नियमित रूप से सेवन नहीं कर पाया। जिस कारण उन्हें  लगभग 4 वर्षो तक टीबी बीमारी से जूझना पड़ा था। इतने दिनों तक घर पर रहने के कारण उनकी माली हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई। उन्हें पंजाब में सोयाबीन की फैक्ट्री में काम कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करना पड़ता था।

सकारात्मक सोच के साथ नियमित रूप से दवाइयां लेने के बाद सेहत में होने लगा सुधार: डब्लू राम
महादालित परिवार से आने वाले डब्लू राम ने बताया कि तबियत खराब होने के कारण मन में एक डर सा लगने लगा था। लेकिन बीमारी से लड़ाई जीतने की उम्मीद भी थी। क्योंकि टीबी बीमारी का इलाज स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों द्वारा किया जाता है। अंततः इस लड़ाई में सफलता भी मिली। वे कहते हैं कि इस नाउम्मीदी के बीच एक उम्मीद की किरण दिखाई दी और यह तय कर लिया कि हारना नहीं हैं। बल्कि इस लड़ाई से जीत कर समाज के प्रति हीनभावना को दूर भी करना है। इसी सकारात्मक सोच के साथ नियमित रूप से दवाइयां लेने से लगातार सेहत में सुधार होने लगा। लगभग दो वर्षो तक दवा का सेवन करने के बाद अब वह पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं। अब वह समाज के दूसरे लोगों को भी टीबी सहित अन्य बीमारियों से बचाव के लिए जागरूक कर रहे हैं ।

कोरोना संक्रमण के बाद टीबी जैसी बीमारियों में आई गिरावट: डॉ एमके झा
जिला यक्ष्मा नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मिहिरकांत झा ने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल के बाद ज़िले में टीबी जैसी गंभीर बीमारियों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत प्रधानमंत्री के सपनों को साकार करने के लिए ज़िला यक्ष्मा केंद्र के द्वारा समय-समय पर टीबी जैसी संक्रमक बीमारी से लड़ाई जीतने वाले व्यक्तियों की संख्या धीरे धीरे बढ़ने लगी है। क्योंकि यक्ष्मा विभाग के साथ साथ अन्य सहयोगी संस्थाओं यथा – डब्ल्यूएचओ, वर्ल्ड विजन इंडिया, रीच इंडिया और कर्नाटका हेल्थ प्रमोशन ट्रस्ट (केएचपीटी) के द्वारा टीबी मरीजों की खोज के साथ ही जांच और दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सभी का सहयोग अनवरत मिल रहा है। इसके साथ ही निजी स्तर पर क्लीनिक का संचालन करने वाले निजी चिकित्सकों को प्रोत्साहित किया जाता है। अस्पताल में इलाज कराने वाले मरीजों को विशेष तौर पर टीबी के खतरों के प्रति जागरूक किया जाता है। टीबी के मरीजों की जांच एवं इलाज पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। साथ ही जागरूकता से संबंधित कार्यक्रम को लेकर प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक एवं सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों का सहारा लिया जाता है। ताकि शहर से लेकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रचार प्रसार हो सके।